Srinivasa Ramanujan – भारत के एक महान गणितज्ञ जिन्होंने असंख्य खोजे की, जिसे समजने में बाकी गणितज्ञ को लग गए कई साल
दोस्तों यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि आधुनिक युग के इतने बड़े गणितज्ञ Ramanujan ने कोई भी विशेष पढ़ाई नहीं की थी, उन्होंने खुद की मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया । वह पूरी जिंदगी गरीबी से जूझते रहे , स्कूल के एग्जाम में फेल हो गए जिससे स्कॉलरशिप मिलना भी बंद हो गया और फिर उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी ।
पुरे जीवन में उनके स्वास्थ्य में भी उनका साथ नहीं दिया । नौकरी के लिए भी उन्हें दर-दर भटकना पड़ा लेकिन ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित में उनकी लगन हमेशा उन्हें प्रेरित करती रही और इतने कठिनाइयों के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी । रामानुजन के टैलेंट का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ 11 साल की उम्र में स्कूल में रहते हुए भी कॉलेज लेवल का Math’s solve करते थे । सिर्फ 13 साल की उम्र में उन्होंने Adnavnce Trigonametry को रैट लिया और अपनी 32 साल की छोटी सी उम्र में मैथ के करीब 3900 इक्वेशन की खोज की ।
इस महान गणितज्ञ के सम्मान में पूरा देश उनके जन्मदिन को “नेशनल मैथमेटिक्स डे” ( National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाता है ।
About Srinivasa Samanujan :
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 ( srinivasa ramanujan birthday ) को भारत के तमिलनाडु राज्य में इरोड नाम की एक गांव में हुआ था । उनके पिता का नाम की श्रीनिवास अयंगर था जो एक साड़ी की दुकान में क्लर्क के रूप में काम करते थे और उनकी मां का नाम कोमल तामल था जो एक हाउसवाइफ थी और साथ ही साथ पास के मंदिर में भजन गाने का काम करती थी । रामानुजन का बचपन ज्यादातर कुंभकोणम नाम की जगह पर बिता जो कि पुराने मंदिरों के लिए अभी भी बहुत फ़ेमस है और आज भी उनके घर को वहां म्यूजियम के रूप में देखा जा सकता है । बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बच्चों से बहुत कम था जहां बच्चे एक या फिर डेढ़ साल में बोलने लगते हैं वही रामानुजन ने 3 सालों तक कुछ नहीं बोला था और इसी वजह से उनके घर वालों को चिंता होने लगी थी कि कहीं वह गूंगे तो नहीं ।
रामानुजन ( S Ramanujan ) की माँ ने 1891 और 1894 में दो और बच्चों को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से दोनों की बचपन में ही म्रृत्यु हो गई। 1 अक्टूबर 1892 को रामानुजन का एडमिशन एक लोकल के स्कूल में करवाया गया । उन्हें पढ़ाई लिखाई का शौक बचपन से ही था और मैथ के सब्जेक्ट में तो उनकी विशेष रूचि थी । रामानुजन ने 10 साल की उम्र में प्राइमरी की परीक्षा दी और पूरे जिले में सबसे ज्यादा नंबर लाने वाले छात्र बने और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल में एडमिशन ले लिया। शुरू से रामानुजन के दिमाग में हमेशा अजीबोगरीब question आया करते रहते थे , जैसे की संसार में पहला पुरुष कौन था, पृथ्वी और बादल के बीच की दूरी कितनी होती है और भी इसी तरह के बहुत सारे उनके प्रश्न उनके टीचर्स को कभी कभी बहुत अटपटे लगते थे । और वह उसे चिल्ला उठते थे लेकिन रामानुजन का स्वभाव इतना प्यारा था कि कोई भी उनसे ज्यादा देर तक नाराज नहीं हो सकता था।
बहुत जल्द स्कूल में उनका टैलेंट सबको दिखाई देने लगा और जैसा की मैथ सब्जेक्ट में उनकी रुचि थी इसलिए वह स्कूल में होने के बावजूद कॉलेज के क्वेश्चन को सॉल्व करते थे । एक बार तो रामानुजन के स्कूल के प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि स्कूल में होने वाली परीक्षाओं का लेवल रामानुजन के लिए लागू नहीं होता है क्योंकि वह चुटकी में उन प्रश्नों को सॉल्व कर देते थे और नतीजा यह हुआ कि ग्यारहवीं की परीक्षा में हुए मैथ को छोड़कर बाकी सभी सब्जेक्ट में फेल हो गए । जिसकी वजह से उनको स्कॉलरशिप मिलने की बंद हो गई । एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से स्कॉलरशिप भी मिली बंद हो गई थी । रामानुजन के लिए यह एक बहुत कठिन समय था ।
उसके बाद घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने मैथ की ट्यूशन लेनी शुरू कर दी कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन ने ट्वेल्थ क्लास की एग्जाम दी और उसने भी फेल हो गए जिसके बाद उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया । स्कूल छोड़ने के बाद अगले 5 साल का समय रामानुजन के लिए बहुत कठिनता भरा रहा । उनके पास ना कोई नौकरी थी और ना ही किसी के साथ काम करके अपने रिसर्च को prove करने का मौका लेकिन ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति उनकी लगन ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अकेले ही अपनी रिसर्च को जारी रखा ।
और कुछ प्रेरणादायी कहानी :
1908 में रामानुजन ( S Ramanujan ) के माता-पिता ने उनकी शादी जानकी नाम की एक लड़की से कर दी । शादी के बाद अब वह अकेले नहीं थे, उनकी पत्नी की भी रिस्पांसिबिलिटी उन पर आ गई थी और इसीलिए सब कुछ भूलकर मैथ के रिसर्च में लगे रहना पॉसिबल नहीं था। इसीलिए नौकरी की तलाश में मद्रास गए लेकिन बारावी की परीक्षा पास ना होने की वजह से रामानुजन को नौकरी नहीं मिली और उसी बीच तबीयत भी बहुत बिगड़ गई जिससे वापस उन्हें घर लौट कर आना पड़ा । तबीयत ठीक होने के बाद रामानुजन वापस मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू करदी । किसी के कहने पर वो वहां के डेपुटी कलेक्टर श्री वीर रामास्वामी अय्यर से मिले , अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे और आखिरकार उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिला अधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर उन्हें 25 हर महीने की स्कॉलरशिप दिलवाई ।
इस स्कॉलरशिप की मदद से रामानुजन ने मद्रास में 1 साल रहते हुए अपना पहला रिसर्च पब्लिश किया जिसका टाइटल था प्रॉपर्टीज ऑफ़ बरनौली नंबर ( Properties of bernoulli number) । अपना पहला रिसर्च पब्लिश्ड करने के बाद उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी कर ली और सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहां उन्हें अपने गणित के लिए भी समय मिल जाता था । रामानुजन ( Ramanujan inventions ) रात भर जाग जागकर नए-नए गणित के फार्मूला लिखा करते थे और फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद ऑफिस निकल जाया करते थे । अब रामानुजन का रिसर्च एक ऐसे लेवल पर आ गया था कि बिना किसी अन्य गणितज्ञ की सहायता से काम को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था ।
और कुछ प्रेरणादायी कहानी :
इसी समय रामानुजन ने अपने थेओरी के कुछ फ़ॉर्मुलास को एक प्रोफ़ेसर को दिखाया और उनसे सहायता मांगी तो उनका ध्यान लंदन के प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया । प्रोफेसर हार्डी उस समय विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक थे वे , रामानुजन के साथ काम करने के लिए भी तैयार हो गए और फिर आर्थिक सहायता करते हुए उन्हें इंग्लैंड बुला लिया । रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह दोस्ती दोनों के लिए ही बहुत फायदेमंद साबित हुई और उन्होंने मिलकर बहुत सारी रिसर्च की । उसी बीच रामानुजन की एक विशेष खोज की वजह से कैंब्रिज ( Cambridge ) यूनिवर्सिटी ने उन्हें BA की उपाधि दी ।
इसके बाद वहां रामानुजन ( ramanujan mathematician ) को रॉयल सोसायटी का उस समय फेलो बनाया गया था जब भारत गुलामी में जी रहा था । तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसाइटी की सदस्यता मिलना एक बहुत बड़ी बात थी । कुछ समय के बाद इंग्लैंड में ही रामानुजन ( Ramanujan ) की तबीयत बहुत खराब हो गई और जांच कराने के बाद डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें टीबी हो गया है । उस समय टीबी की बीमारी की कोई दवा नहीं होती थी और अंत में डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा क्योंकि इंग्लैंड का मौसम उनकी तबीयत के लिए अच्छा नहीं था । लेकिन भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य रामानुजन का साथ नहीं दिया और हालत और गंभीर होती चली गई आखिरकार अपना पूरा जीवन गणित को समर्पित करने के बाद 26 अप्रैल 1920 ( Srinivasa Ramanujan death ) को 32 साल की उम्र में रामानुजन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
जीवन लंबा हो या छोटा अगर आपको अपने आप पर विश्वास है, अपने कार्यों के प्रति लगन है, तो सफलता जरुर मिलेगी । मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है, हर पहलू जिंदगी का इम्तिहान होता है, डरने वालों को कुछ भी नहीं मिलता, जिंदगी में लड़ने वालों के कदमों में जहान होता है ।
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